देश के बहुसंख्यक समाज को "सांप्रदायिक हिंसा निवारण विधेयक" के विरोध में व्यस्त कर धर्मनिरपेक्षता के नित नूतन कीर्तिमान बनाती भारतीय राजनीति आज कल सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में मुस्लिम आरक्षण की प्रतीक्षा तो आतुरता से कर ही रही है। इसी बीच तमिलनाडु से इसी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का एक और उदाहरण सामने आया। मुख्यमंत्री जयललिता ने येरुशलम की तीर्थ यात्रा पर जाने के इच्छुक ईसाईयों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायतादेने की घोषणा की है।
ज्ञात हो कि भारत सरकार पहले ही हज यात्रा पर लगभग १० हजार करोड़ की वार्षिक आर्थिक सहायता हज करने के लिए देती है। हज यात्रियों के पासपोर्ट बनाते समय उनकी पुलिस जांच भी नहीं की जाती, ऐसे सरकारी आदेश हैं। अभी गत सप्ताह ही जयललिता ने प्रदेश सरकार कि ओर से हज सब्सिडी में भी भारी वृद्धि की थी एवं उलेमाओं को पेंशन देने की भी घोषणा की थी।
जयललिता ने ये घोषणा ईसाई समाज के एक कार्यक्रम के दौरान की। उन्होंने ये भी कहा कि वे उनकी और भी मांगों को शीघ्र पूरा करेंगी। जयललिता के इस आदेश पर सनातन राष्ट्रवाद की विचारधारा लेकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध धर्मयुद्ध लड़ रहे डॉ. सुब्रमनियन स्वामी ने तुरंत जयललिता को कहा है कि वे कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हिंदुओं को भी ऐसी ही आर्थिक सहायता की घोषणा करें अन्यथा वे न्यायालय का द्वार खटखटाएंगे। डॉ. स्वामी ने स्पष्ट कहा कि करदाताओं का धन मुख्यमंत्री अपने अल्पसंख्यक वोट बनाने के लिए इस तरह से लुटा रही हैं।
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